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Thursday, February 15, 2018

कमर दर्द (स्लिप डिस्क) समस्या से छुटकारे के लिए टाँका रहित (stitchless technique) / पिन होल (minimal invasive)

डॉ. संजय शर्मा
एम. बी. बी. एस. - डी.ए., एफ. आई. पी. एम.
(फैलो इंटरवेंशनल पेन फिजिशियन - एल्गोलॉजिस्ट)
जयपुर पेन रिलीफ़ सेंटर (JPRC)

लगभग हर इंसान को अपने जीवन में कभी भी कमर दर्द का अनुभव हो सकता है, कई बार यह दर्द पैरों तक भी चले जाता है! अमूमन बोलचाल में स्लीप डिस्क या सियाटिका समझ कर लोग इलाज लेते रहते है! जो कि चिकित्सा विज्ञानं के मुताबिक जब तक एम. आर. आई. रिपोर्ट एवं रोग लक्षण तर्क संगत नहीं हो तो यह सोचना गलत होगा! आज हर आयुवर्ग का इंसान इस रोग से ग्रसित है! मनुष्य की रीढ़ की हड्डी शरीर का सबसे मजबूत हिस्सा होती है! जो कि कशेरुका (वर्टिब्रा), कार्टिलेज (डिस्क), जोड़ एवं मांसपेशियों, लिंगामेट एवं नसों से मिलकर बनी होती है! किसी भी हिस्से की प्रभावित होने से दर्द उत्पन्न होता है! दर्द के अन्य कारण में टी.बी., कैंसर, फ्रेक्चर इत्यादि मुख्यतः देखा गया है! लेकिन हर दर्द को स्लीप डिस्क या सियाटिका मानना एक  भ्रम है!

कमरदर्द की बीमारियों के लक्षण 

पैरों का सुन्न होना, कमजोरी का एहसास होना, पेशाब या शौच में दिक्कत, चलने में असमर्थता, एक जगह खड़े होने में समस्या, पैरों में झनझनाहट, नसों में करंट दौड़ना, खांसने या झींकने पर भयंकर दर्द या मरीजों की चाल शराबियो के जैसा होना इत्यादि!

क्रोनिक कमर दर्द का इलाज केवल सर्जरी से ही संभव है?

९० प्रतिशत स्पाइन के दर्द की समस्या कुछ समय में खुद ही सही हो जाती है! केवल अपनी जीवन शैली या कुछ सावधानियों से यह समस्या सुलझायी जा सकती है! लेकिन कई सप्ताह या महीनो तक किसी प्रकार के दर्द में आराम नहीं हो रहा है तो समझे या तो हमारा डाइग्नोसिस गलत है या इलाज गलत किया गया है! ज्यादा समय एक्सरसाइज़ या थेरेपी या दर्द निवारक इसका इलाज नहीं है! स्लिपडिस्क या कमर दर्द या नस का दबाव के इलाज के बारे में अपने समाज में लोगों द्वारा भ्रामक प्रचार किया जाता है कि इस इलाज से रीढ़ की हड्डी से सम्बंधित खतरा है एवं इस समस्या का इलाज संभव नहीं है, जैसे मलमूत्र के बंद होने का खतरा, या लकवा मार जाना! ऐसा सिर्फ इसलिए होता है क्यूँकि पहले से ही मरीज इस समस्या से ग्रसित है!

कमर दर्द की समस्या से छुटकारे के लिए २ प्रकार के इलाज संभव है परंपरागत या टाँका रहित (stitchless technique) पिन होल तकनीक जिसके बारे में पूर्ण जानकारी निम्नलिखित प्रकार से है-

परंपरागत सर्जरी (conventional surgery)


शल्य चिकित्सा के बाद, शल्य चिकित्सा टीम द्वारा चीरों को बंद कर दिया जाता है, इसलिए मांसपेशियों को अनुमानित स्थिति में वापस सिल दिया जाता है। सर्जरी के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली अत्यधिक आक्रामक तकनीकों के कारण, रोगियों को प्रक्रिया से पुनर्प्राप्त करने के लिए अस्पताल में कई दिन रहने की आवश्यकता होती है। यह सर्जरी की लागत से परे अतिरिक्त अस्पताल खर्च आदि होते है इसके अतिरिक्त, पारंपरिक सर्जरी के बाद वसूली अस्पताल में लम्बे समय तक रहना होता है क्योंकि रीढ़ की हड्डी के आसपास के मुख्य मांसपेशियों को शरीर का समर्थन करने के लिए रिकवरी की आबश्यकता होती है!

पिनहोल तकनीक (मिनिमल इनवेसिव)


आज के समय में बिना चीरफाड़ तकनीक एक वरदान के रूप में साबित हुई है! इसमें दूरबीन या एंडोस्कोपिक या माइक्रोस्कोप के द्वारा रीढ़ की हड्डी के अंदर छोटी से छोटी संरचना देखी जा सकती है!  इसके फलस्वरूप किसी प्रकार के सर्जिकल नुकसान की सम्भावना न के बराबर होती है!

इसके तहत दूरबीन से या माइक्रोस्कोप के माध्यम से एक सूक्ष्म छिद्र के द्वारा अंदर देखकर इलाज संभव होता है! इस प्रक्रिया में सबसे पहले कमर के हिस्से को सुन्न किया जाता है एवं संबंधित डॉक्टर डिस्क या नस के दबाव को देखते हुए इलाज करते है!

नस या डिस्क या स्पाइनल कॉर्ड्स दबाव एम. आर. आई. जाँच के बिना किसी तरह से नहीं पता लगाया जा सकता है! एक्सरे में हड्डी के अलावा कुछ नज़र नहीं आता, उसमे सुक्ष्म संरचना जैसे नसे, डिस्क या स्पाइनल कॉर्ड्स कहाँ से नज़र आ जाती है?

यह तकनीक सम्भवतया टांका रहित (stitchless technique) अधिकतम एक या दो टांको के इलाज से संभव है, इस प्रक्रिया में मरीज को बेहोश न करके सिर्फ सम्बंधित जगह को सुन्न करके रोगी को लोकक एनिस्थिसिया की अवस्था में रखकर इलाज किया जाता है जिसमे रोगी अपना पूरा ऑपेरशन देख पाता है! इस प्रक्रिया में रोगी को मात्र २४ घंटे ही अस्पताल में रहना पड़ता है! इस प्रक्रिया के बाद रोगी अपनी दैनिक गतिविधियां आसानी से कर सकने में सक्षम होते है जैसे चलना-फिरना, उठना-बैठना, खाना-पीना इत्यादि, एवं कुछ दिनों के भीतर ऑफिस या अन्य काम जारी कर सकते है! 

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